सीली हवा छू गई, सिला बदन छिल गया
नीली नदी के परे पीला सा चाँद खिल गया
तुमसे मिली जो ज़िन्दगी, हमने अभी बोई नहीं
तेरे सिवा कोई न था, तेरे सिवा कोई नहीं
सीली हवा छू गई, सीला बदन छिल गया
जाने कहाँ कैसे शहर ले के चला ये दिल मुझे
तेरे बगैर दिन ना जला, तेरे बगैर शब ना बुझे
सीली हवा छू गई, सीला बदन छिल गया
जितने भी तय करते गए, बढ़ते गए ये फ़ासले
मीलो से दिन छोड़ आएँ, सालो से रात ले के चले
सीली हवा छू गई, सीला बदन छिल गया
नीली नदी के परे पीला सा चाँद खिल गया ...
- गुलज़ार