रविवार, 25 मार्च 2018

कुछ और लाइने आपके नज़र करती हूँ। ...




गिरहे सुलझाने बैठी हूँ 
ये और उलझ जाती है 
हर कुछ धुंधला धुंधला 
साफ़ नज़र आता है 
बस रुकी रुकी सड़को पर 
वक़्त दौड़ता रहता है 
सदियों से जाने किसे  ढूंढ़ता ये मन 
आज उदास बैठा है ... 
उदासी की गिरहे ,सुलझती  ही नहीं 
शायद ये छोर हो,शायद वो छोर हो 
अब ये मन हताश बैठा है 
आश टूटी  नहीं फिर भी 
सांस  छूटी नहीं फिर भी 
सुलझ ही जाएगी इक दिन 
गांठे पिघल ही जाएगी इक दिन 
मोती पिरोओगी, जिंदगी
तेरे धागो मे उस दिन ... 




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