मंगलवार, 2 अप्रैल 2019






 राहें हँस के  कहती है मुझे, 
थकते नहीं क्या ...
 मैं भी उत्तर में मुसकुरा देती हूँ ...
आओ साथ चले साथी 
बड़ी तपती धूप है राहो में
नंगे पैर  जलते है पाँव ...
मेध बरसो तुम भी तो कभी 
देखूं  मैं भी रंग तुम्हारे ...
चलो जाने भी दो,
 हम ही आएंगे ,
कभी गांव तुम्हारे ...





   

ये क्या हुआ है 


मन बावरा है 

 जाने ये क्या हुआ है 

सपना था कोईनींद से जगा है

कैसे इसको बताऊतूखुद से ठगा है ...

कब तक ना समझे

किस भ्रम में पड़ा है ..

भटकती ये राहें 

बस,तेरी सज़ा है ...

मन बावरा है ...