मंगलवार, 22 नवंबर 2022

                                 

                                  माँ तुम आ गई

                                                                        आओ माँ ...

नारी का ये रूप सबसे निर्मल

हर रूप में नारी तू माँ है

हे माँ तू दीप दिखा

नारी को उसकी पहचान बता   

-    पुष्पा - 


 

रविवार, 20 नवंबर 2022

ज़िन्दगी 

                          इस अंबर पे सैकड़ों तारे झिलमिलाते से

कई अनजाने और कुछ पहचाने से

एक विशाल भू – खंड

और उसे पूर्णता देता ये अंबर

कितनी हलचल, कितना शोर

जैसे कही पहुँचने की होड़

कुछ पा लेने की दौड़

और कई खामोशियाँ

कुछ तन्हाइयाँ

कभी चाँद, तारो से बातें

कई रिवायते

कुछ संस्कार

कितनी हँसी, खिलखिलाहट

कुछ आँसू

कितने दोस्त और हबीब

कुछ रकीब

इन सबके साथ

चलती ये ज़िंदगी

गिरती सम्भलती

रूकती, भागती ये ज़िन्दगी

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-    पुष्पा गुप्ता - 


 

सोमवार, 7 नवंबर 2022

 


जाते जाते सूरज मुझसे ये कह गया

कल फिर से मिलूंगा दोस्त

अभी बाकी का सफ़र रह गया...

मिलना तुम मुझे, उसी चमकती

निग़ाहों से निहारना ...

हां सच में मै वहीं हूं, तेरे आस का सूरज |

गोधुली बेला, सूरज की चमक मद्धम सी

सभी पक्षी घर जाने को आतुर

धीरे-धीरे क्षितिज के पार जाती लालिमा

ये अँधेरा बोध कराता ख़ुद का

जैसे राही बस सुबह का इंतज़ार ही ना करे

अस्तित्व की कुछ पहचान भी पा ले

जैसे सुबह और रात

पूरक है एक दूसरे का

ऐसे ही चलते हुए ठहरना भी

इशारा है सूरज का...

सफ़र आभी बाकी है दोस्त

किरण फूटेगी

चिड़ियाँ फ़िर चहचहाएँगी

क्योंकि

जाते जाते सूरज मुझसे ये कह गया

कल फिर से मिलूंगा दोस्त

अभी बाकी का सफ़र रह गया...

-    पुष्पा गुप्ता  -