जाते जाते सूरज मुझसे ये कह गया
कल फिर से मिलूंगा दोस्त
अभी बाकी का सफ़र रह गया...
मिलना तुम मुझे, उसी चमकती
निग़ाहों से निहारना ...
हां सच में मै वहीं हूं, तेरे आस का सूरज |
गोधुली बेला, सूरज की चमक मद्धम
सी
सभी पक्षी घर जाने को आतुर
धीरे-धीरे क्षितिज के पार जाती
लालिमा
ये अँधेरा बोध कराता ख़ुद का
जैसे राही बस सुबह का इंतज़ार ही
ना करे
अस्तित्व की कुछ पहचान भी पा ले
जैसे सुबह और रात
पूरक है एक दूसरे का
ऐसे ही चलते हुए ठहरना भी
इशारा है सूरज का...
सफ़र आभी बाकी है दोस्त
किरण फूटेगी
चिड़ियाँ फ़िर चहचहाएँगी
क्योंकि
जाते जाते सूरज मुझसे ये कह गया
कल फिर से मिलूंगा दोस्त
अभी बाकी का सफ़र रह गया...
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पुष्पा गुप्ता -
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