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ज़िन्दगी |
इस अंबर पे सैकड़ों तारे झिलमिलाते से
कई अनजाने और कुछ पहचाने से एक विशाल भू – खंड और उसे पूर्णता देता ये अंबर कितनी हलचल, कितना शोर जैसे कही पहुँचने की होड़ कुछ पा लेने की दौड़ और कई खामोशियाँ कुछ तन्हाइयाँ कभी चाँद, तारो से बातें कई रिवायते कुछ संस्कार कितनी हँसी, खिलखिलाहट कुछ आँसू कितने दोस्त और हबीब कुछ रकीब इन सबके साथ चलती ये ज़िंदगी गिरती सम्भलती रूकती, भागती ये ज़िन्दगी -
पुष्पा गुप्ता - |
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